दिनांक: 11/12/2024
राजकीय महाविद्यालय धर्मशाला में श्री मद्भगवद्गीता-जयंती के उपलक्ष पर दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन ।
राजकीय महाविद्यालय धर्मशाला के संस्कृत-विभाग ने श्री मद्भगवद्गीता-जयंती के उपलक्ष पर दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया। कार्यशाला का प्रमुख विषय “श्री मद्भगवद्गीता के आलोक में जीवन-दर्शन” रहा।
डिग्री कॉलेज धर्मशाला में श्रीमद्भागवत गीता जयंती धूमधाम व हर्षोल्लास के साथ मनाई गई। कार्यशाला का समन्वयन समायोजन व निर्देशन संस्कृत विभाग की अध्यक्षा प्रो. स्वर्ण लता शर्मा ने किया। कार्यक्रम के दूसरे दिन में कॉलेज प्राचार्य प्रो राकेश पठानिया ने बतोर मुख्य-अतिथि शिरकत की, जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ.संजय पठानिया ने की। मुख्य अतिथि व अतिथियों का स्वागत संस्कृत विभाग के छात्र-छात्राओं ने तिलक लगाकर व बेजेज पहनाकर किया।
संस्कृत विभाग प्रबंधन समिति के संयोजक प्रो. स्वर्ण लता शर्मा व कॉलेज प्राचार्य प्रो राकेश पाठनिया ने मां सरस्वती के चित्र के सम्मुख कार्यक्रम का आरम्भ दीप प्रज्वलन मंत्र तथा गणेश अथर्वशीर्ष वैदिक मंगलाचरण के साथ हुआ ।
अतिथियों व सदस्यों ने भगवान श्री कृष्ण और श्रीमद् भागवत गीता की विधि-विधान से पूजा अर्चना की। गीता के श्लोकों के ऐतिहासिक, पौराणिक, वैज्ञानिक व दार्शनिक व्याख्यान प्रस्तुत की गई। मुख्य वक्ता केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रो डॉ योगेंद्र कुमार धामा ने गीता जयंती के कार्यक्रम में बतौर सारस्वत अतिथि के रूप में शिरकत की उन्होंने कहा कि गीता का सार हमें जीवन में जीने की कला सिखाता है गीता ही सत्य है और सत्य ही सनातन है। सभी प्राणी प्रकृति के आधीन हैं। प्रकृति अपने अनुसार हर प्राणी से कर्म करवाती है और उसके अनुसार परिणाम भी देती है।
कॉलेज प्राचार्य प्रो. राकेश पठानिया ने कहा कि गीता हमें निष्काम कर्म की प्रेरणा देती है। इसके अनुसार कर्तव्य ही धर्म है अर्थात धर्म का अर्थ कर्तव्य होता है। भगवान के अनुसार अपने कर्तव्य को पूरा करने में कभी यश, अपयश, हानि और लाभ का विचार नहीं करना चाहिए। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि श्रीमद्गीता को मानव जीवन की सभी प्रकार की चिंताओं और दुख को खत्म करने का साधन माना गया है। गीता के उपदेश में जीवन जीने, धर्मका अनुसरण करनेऔर कर्म के महत्व को विशेष रूप से समझाया गया है। श्रीमद्भगवद्गीता दुनिया का सबसे श्रेष्ठ ग्रंथ है। इस ग्रंथ का पाठ करनेवाला व्यक्ति जीवन में कभी भी परेशान नहीं हो सकता है।
केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रो डॉ योगेंद्र कुमार धामा ने अपने वक्तव्य में कहा कि श्रीमद्गीता को मानव जीवन की सभी प्रकार की चिंताओं और दुख को खत्म करने का साधन माना गया है। गीता के उपदेश में जीवन जीने, धर्मका अनुसरण करनेऔर कर्म के महत्व को विशेष रूप से समझाया गया है। श्रीमद्भगवद्गीता दुनिया का सबसे श्रेष्ठ ग्रंथ है। इस ग्रंथ का पाठ करनेवाला व्यक्ति जीवन में कभी भी परेशान नहीं हो सकता है। आगे उन्होंने बताया समाज को निडर और आश्वस्त करने के लिए भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि हे भारत (अर्जुन), जब-जब अधर्म में वृद्धि होती है, तब-तब मैं (श्रीकृष्ण) धर्म के अभ्युत्थान के लिए अवतार लेता हूं। तथा सज्जन पुरुषों के कल्याण के लिए और दुष्कर्मियों के विनाश के लिए और धर्म की स्थापना के लिए मैं(श्रीकृष्ण) युगों-युगों से प्रत्येक युग में जन्म लेता आया हूं और लेता रहूंगा। इसलिए हमें अपने कर्म सिद्धांत के बारे में ध्यान देना चाहिए क्योंकि कर्म से ही भाग्य का निर्माण होता है। समाज को निडर और आश्वस्त करने के लिए भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि हे भारत (अर्जुन), जब-जब अधर्म में वृद्धि होती है, तब-तब मैं (श्रीकृष्ण) धर्म के अभ्युत्थान के लिए अवतार लेता हूं। तथा सज्जन पुरुषों के कल्याण के लिए और दुष्कर्मियों के विनाश के लिए और धर्म की स्थापना के लिए मैं(श्रीकृष्ण) युगों-युगों से प्रत्येक युग में जन्म लेता आया हूं और लेता रहूंगा। इसलिए हमें अपने कर्म सिद्धांत के बारे में ध्यान देना चाहिए क्योंकि कर्म से ही भाग्य का निर्माण होता है।
दो दिसवसीय कार्यशाला के दौरान आयोजित बिभिन्न प्रतियोगताओं में गीता श्लोक-लेखन तथा गीता-प्रश्नोतरी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिसमें विद्यार्थियों ने बढ़ चढ़कर भाग लिया।
कार्यक्रम के मुख्य आकर्षण सोनाली और सारिका ने महाभारत गीत गाकर सभी को आह्लादित किया। महाविद्यालय की छात्रा सोनाली ने “श्रीमद्भागवद्गीता और गीता का महत्व” विषय पर एक प्रेरक भाषण दिया।
महाविद्यालय के छात्र अरुण कुमार ने श्री मद्भगवद्गीता के पंद्रहवें अध्याय का सस्वर पाठ प्रस्तुत किया। इसके बाद, गीता श्लोक वाचन प्रतियोगिता और गीता भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया।
अंत में प्रोफ़ेसर स्वर्ण लता शर्मा ने कार्यशाला को सफल बनाने व् सहयोग देने के लिए कॉलेज प्रशासन व सभी प्राध्यापकों का आभार व धन्यवाद ज्ञापित किया और कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता सनातन संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर है जिसमें सोलह कलापूर्ण पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण के मुखारविंद से वेदों ,उपनिषदों का सार गर्भित ज्ञान निःसृत हुआ है । 700 श्लोकों में भगवान श्री कृष्ण ने जीवन के सभी पहलुओं को स्पर्श किया है तथा हर प्रकार की वृत्ति के मनुष्य के लिए श्रीमद्भगवद्गीता कोई न कोई संदेश अवश्य देती है ।यह ग्रंथ भारतीय संस्कृति के मूल मंत्र वसुधैव कुटुंबकम को भी चरितार्थ करता है। इस दौरान प्रतियोगिताओं की निर्णायक मंडल में डॉ. अंजली शर्मा , डॉ हर्षा राणा ने अहम भूमिका निभाई इस दौरान गणमान्य अध्यापक व विद्यार्थी मौजूद रहे।
भाषण प्रतियोगिता में प्रथम स्थान अरुण कुमार, द्वितीय स्थान सृष्टि तथा तृतीय स्थान महक ने प्राप्त किया किया.
श्लोक वाचन प्रतियोगिता में प्रथम स्थान शगुन तथा प्रीती ने प्राप्त किया द्वितीय स्थान अंशिका तथा सारिका ने प्राप्त किया ,तृतीय स्थान पलिका तथा अंकिता ने पाया